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लीन प्रबंधन और उसके तत्व: भारतीय परिदृश्य में लीन प्रबंधन का प्रयोग

लीन प्रबंधन की अवधारणा, जो मूल रूप से जापानी विनिर्माण उद्योगों से उद्भूत हुई है, विश्वव्यापी तौर पर व्यापार जगत में अपनी प्रभावशीलता सिद्ध कर चुकी है। भारत में भी इसका प्रयोग उद्योग जगत में बढ़ते जा रहा है, विशेषकर विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में। लीन प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य है व्यर्थता को कम करना और मूल्य निर्माण प्रक्रिया को अधिक कुशल बनाना।

लीन प्रबंधन के मुख्य तत्व:

  1. वेस्ट रिडक्शन (अपव्यय नियंत्रण): लीन प्रबंधन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है अपव्यय को कम करना। इसमें सात प्रकार के अपव्यय शामिल होते हैं – अत्यधिक उत्पादन, इंतजार का समय, अनावश्यक परिवहन, अतिरिक्त प्रोसेसिंग, इन्वेंट्री, मोशन वेस्ट, और दोष।
  2. काइज़ेन (सतत सुधार): काइज़ेन का अर्थ है सतत सुधार जो छोटे लेकिन निरंतर बदलावों के माध्यम से किया जाता है। यह प्रत्येक कर्मचारी से सुधार की प्रतिबद्धता मांगता है।
  3. जिदोका (ऑटोनोमेशन): जिदोका का तात्पर्य है ऐसी तकनीकें विकसित करना जो गुणवत्ता में कमी के बिना कार्य प्रक्रियाओं को ऑटोमेट कर सकें। इससे मशीनें और कर्मचारी गलतियों को स्वतः पहचान कर ठीक कर सकते हैं।
  4. 5S (सोर्ट, सेट इन ऑर्डर, शाइन, स्टैंडर्डाइज़, और सस्टेन): 5S विधि व्यवस्थित कार्यस्थल प्रबंधन पर केंद्रित है जो सुरक्षा और कुशलता में वृद्धि करती है।
  5. पोका-योके (मूर्ख-रोधी तकनीक): यह तकनीक उन यांत्रिक ऐड्स का विकास करती है जो मानवीय त्रुटियों को रोकते हैं।

भारतीय परिदृश्य में लीन प्रबंधन का प्रयोग:

भारत में, लीन प्रबंधन तकनीकों का उपयोग विशेष रूप से ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, और निर्माण उद्योगों में किया जा रहा है। भारतीय कंपनियां इन तकनीकों को अपनाकर अपनी उत्पादन लागत को कम करने और ग्राहक संतुष्टि में वृद्धि कर रही हैं। इसके अलावा, ये तकनीकें संस्थानों में कार्य संस्कृति को भी प्रभावित करती हैं, जिससे कर्मचारियों में सुधार और नवाचार के प्रति एक जागरूकता विकसित होती है।

लीन प्रबंधन न केवल उद्योगों में बल्कि भारतीय सेवा सेक्टर में भी अपनी प्रासंगिकता सिद्ध कर रहा है, जहाँ यह ग्राहक सेवा और ऑपरेशनल दक्षता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।